Home BOLLYWOOD आज भी चरित्र अभिनेता के रूप में चर्चित हैं दिलीप राज

आज भी चरित्र अभिनेता के रूप में चर्चित हैं दिलीप राज

by Team MMetro
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                      60 के दशक में एक फिल्म आई थी ‘शहर और सपना’ भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के विख्यात फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास की यह फिल्म नया संसार के बैनर तले बनी थी जिसे प्रदर्शन के पश्चात नेशनल अवार्ड से नवाजा गया था और इसी फिल्म से सिने फलक पे एक नया सितारा उस दौर में उभर कर सामने आया दिलीप राज जो ऐतिहासिक फिल्मों के सुपर अभिनेता जयराज के सपुत्र के रूप में फिल्मों में आने के पूर्व ही चर्चित थे।  संभवतः अभिनेता स्व जयराज ने अपने इस होनहार पुत्र का नाम दिलीप राज ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार और ग्रेट शोमैन राज कपूर की ख्याति को ध्यान में रखते हुए रखा होगा। स्व ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म-‘शहर और सपना’ में दिलीप राज के साथ सुरेखा को इंट्रोड्यूस किया गया था।

इस फिल्म के गीतकार और संगीतकार क्रमशः अली सरदार जाफरी और जे पी कौशिक थे। इस फिल्म के मुख्य कलाकार अनवर हुसैन,मनमोहन कृष्ण,जगदीश राज,असित सेन,नाना पलिसकर, रसीद खान,दिलीप रॉय और डेविड थे। देश की ट्रेड कैपिटल महानगर बॉम्बे(अब मुम्बई) में व्याप्त आवासीय समस्या व भाग दौड़ में उलझे कैरेक्टर को स्व ख्वाजा अहमद अब्बास ने इस फिल्म की कथावस्तु का आधार बनाया था। इस फिल्म के बाद अभिनेता दिलीप राज ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

आल्हा ऊदल, शहर और सपना(1963), हमारा घर (1964), दादी माँ(1966),खिलाड़ी(1968),कन्यादान(1968),सती सुलोचना(1969),बड़ीदीदी(1969),सपना(1969),   पड़ोसी(1971),आंगन(1973),बड़ीमाँ(1974),जलवा(1974),The Living Corpse (1986), दूसरा कानून(1989),द नक्सलाइट्स (1980), हाउस नम्बर-13(1991), किरदार  टीवी धारावाहिक(1993–1995), प्रेम(1995), खोया खोया चाँद(1995), भैरवी(1996), मैं फिर आऊंगी(1998), मानसून(1999), चोट(2004), और
मोहन जोदड़ो(2016) जैसी अनगिनत फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता दिलीप राज अपनी पिछली यादों को अपने वर्तमान के साथ समेटे भविष्य के प्रति काफी आशस्वत नज़र आते हैं।

आज के दौर में फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में आये बदलाव को वो बहुत ही सहज भाव से स्वीकार करते हैं। बकौल दिलीप राज आज फिल्म इंडस्ट्री प्रयोगात्मक दौर से गुजर रहा है…फिल्म मेकर नवोदित प्रतिभाओं को चांस दे कर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं…ये शुभ संकेत है परंतु फिल्मों के वितरण के मार्ग में थोड़ा संकट है उसे दूर किया जाना चाहिए ताकि नई सोच वाली संदेशपरक फिल्में दर्शकों तक आसानी से पहुंच सके….।

     दिलीप राज की फिल्मी गतिविधियां पांचवें दशक में भी जारी है और आज भी बतौर चरित्र अभिनेता वो फिल्मों और धारावाहिकों में क्रियाशील हैं। फ़िलवक्त अभिनेता दिलीप राज स्क्रीन राइटर एसोसिएशन में निबंधन प्रशाखा प्रभारी के रूप में पदस्थापित हैं।

प्रस्तुति: काली दास पाण्डेय

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आज भी चरित्र अभिनेता के रूप में चर्चित हैं दिलीप राज 60 के दशक में एक फिल्म आई थी 'शहर और सपना' भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के विख्यात फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास की यह फिल्म नया संसार के बैनर तले बनी थी जिसे प्रदर्शन के पश्चात नेशनल अवार्ड से नवाजा गया था और इसी फिल्म से सिने फलक पे एक नया सितारा उस दौर में उभर कर सामने आया दिलीप राज जो ऐतिहासिक फिल्मों के सुपर अभिनेता जयराज के सपुत्र के रूप में फिल्मों में आने के पूर्व ही चर्चित थे। संभवतः अभिनेता स्व जयराज ने अपने इस होनहार पुत्र का नाम दिलीप राज ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार और ग्रेट शोमैन राज कपूर की ख्याति को ध्यान में रखते हुए रखा होगा। स्व ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म-'शहर और सपना' में दिलीप राज के साथ सुरेखा को इंट्रोड्यूस किया गया था। इस फिल्म के गीतकार और संगीतकार क्रमशः अली सरदार जाफरी और जे पी कौशिक थे। इस फिल्म के मुख्य कलाकार अनवर हुसैन,मनमोहन कृष्ण,जगदीश राज,असित सेन,नाना पलिसकर, रसीद खान,दिलीप रॉय और डेविड थे। देश की ट्रेड कैपिटल महानगर बॉम्बे(अब मुम्बई) में व्याप्त आवासीय समस्या व भाग दौड़ में उलझे कैरेक्टर को स्व ख्वाजा अहमद अब्बास ने इस फिल्म की कथावस्तु का आधार बनाया था। इस फिल्म के बाद अभिनेता दिलीप राज ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आल्हा ऊदल, शहर और सपना(1963), हमारा घर (1964), दादी माँ(1966),खिलाड़ी(1968),कन्यादान(1968),सती सुलोचना(1969),बड़ीदीदी(1969),सपना(1969), पड़ोसी(1971),आंगन(1973),बड़ीमाँ(1974),जलवा(1974),The Living Corpse (1986), दूसरा कानून(1989),द नक्सलाइट्स (1980), हाउस नम्बर-13(1991), किरदार टीवी धारावाहिक(1993–1995), प्रेम(1995), खोया खोया चाँद(1995), भैरवी(1996), मैं फिर आऊंगी(1998), मानसून(1999), चोट(2004), और मोहन जोदड़ो(2016) जैसी अनगिनत फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता दिलीप राज अपनी पिछली यादों को अपने वर्तमान के साथ समेटे भविष्य के प्रति काफी आशस्वत नज़र आते हैं। आज के दौर में फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में आये बदलाव को वो बहुत ही सहज भाव से स्वीकार करते हैं। बकौल दिलीप राज आज फिल्म इंडस्ट्री प्रयोगात्मक दौर से गुजर रहा है…फिल्म मेकर नवोदित प्रतिभाओं को चांस दे कर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं…ये शुभ संकेत है परंतु फिल्मों के वितरण के मार्ग में थोड़ा संकट है उसे दूर किया जाना चाहिए ताकि नई सोच वाली संदेशपरक फिल्में दर्शकों तक आसानी से पहुंच सके….। प्रस्तुति: काली दास पाण्डेय

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