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आखिर, बुन्देलखण्ड फिल्म इंडस्ट्री को क्यों नहीं मिल रहा बढ़ावा? : सौरभ मिश्रा

Actor Saurabh Mishra

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बुन्देली कलाकार सौरभ मिश्रा ने कहा कि आजकल हर क्षेत्र की अपनी एक अलग फिल्म इंडस्ट्री है जिसमें से एक भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री बहुत कम समय में ही बड़ी इंडस्ट्री बन चुकी है। यहां हर साल 140 से अधिक फिल्में सिनेमाघरों में रिलीज होती है जो कि अपने क्षेत्र में बहुत पसंद की जाती हैं। अब तो कई भोजपुरी चैनल भी शुरू हो गये हैं, जिससे उन फिल्मों को एक और अच्छा प्लेटफार्म मिला है।

वहीं बुन्देल खण्ड फिल्म इंडस्ट्री की अब तक ठीक से शुरुआत भी नहीं हो पाई है। एक तो यहां संसाधनों की बहुत कमी है। यदि यहां का कोई निर्माता- निर्देशक इन सीमित संसाधनों में भी किसी तरह फिल्म का निर्माण कर भी लेता है तो वह फिल्म सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पाती है। पहले तो सी.डी. का जमाना था तो बुन्देली फिल्में खरीद भी ली जाती थी, पर जब से सी.डी. का दौर भी खत्म हुआ है, तो अब यू-ट्यूब पर उसे रिलीज करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है। ऐसे में जब निर्माता- निर्देशक को उसकी मेहनत का फल नुकसान के रुप में मिलता है तो वह हतोत्साहित होकर किसी दूसरे काम को कर लेना पसंद करता है। ऐसे में यह इंडस्ट्री कभी आगे नहीं बढ़ सकती जब तक यहां की सरकार उन्हें सपोर्ट न करें।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से फिल्म बन्धु योजना के तहत सब्सिडी देने का अच्छा कार्य भी किया है, मगर फिर भी बुन्देलखण्ड के कलाकार इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं, क्योंकि अगर उन्होंने फिल्म बना भी ली, तो उसको बुन्देलखण्ड के सिनेमाघर ही प्रर्दशित करने से मना कर देते हैं। यही वजह है कि इस योजना का लाभ भी भोजपुरी वाले ही ले रहे हैं, फिल्म बन्धु की वेबसाइट पर जाकर आप देखेंगे तो वहां सबसे ज्यादा भोजपुरी फिल्में ही स्वीकृति की लिस्ट में नज़र आएंगी जबकि छोटे पर्दे पर बुन्देलखण्ड की भाषा बहुत पसंद की जा रही है! & टीवी के पहले शो भाभी जी घर पर हैं को दर्शकों द्वारा इतना पसंद किया गया कि जल्द ही उसी प्रोडक्शन हाउस ने एक और शो हप्पू की उलटन पलटन भी शुरू कर दिया और इसके बाद अभी कुछ समय पहले शुरू हुये शो गुड़िया हमारी सब पर भारी भी काफी पसंद किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अब देखना यह होगा कि क्या कभी बुन्देलखण्ड फिल्म इंडस्ट्री बनकर बड़े पर्दे पर कुछ कर पाएगी या सिर्फ उसे छोटे पर्दे पर ही बुन्देली भाषा को लोकप्रियता मिलती रहेगी।

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