‘कोड नेम तिरंगा’ (Code Name Tiranga) नाम से ही पता चल गया कि कहानी किसी एजेंट की है जो देश के लिए किसी मिशन पर जाएगा लेकिन इस बार मिशन पर हीरो नहीं हीरोइन जाएगी और यही इस फिल्म की इकलौती खासियत है. फिल्म में एक्टर तो अच्छे लिए हैं लेकिन फिल्म देखकर लगता है कि यार ये तो सब देखा हुआ है. बस हीरो की जगह हीरोइन आ गई.
कहानी
ये कहानी है दुर्गा नाम की एजेंट की जो विदेश में एक मिशन पर है. ये किरदार परिणीती चोपड़ा ने निभाया है. किसी आतंकवादी को पकड़ने का मिशन और इस मिशन के दौरान उसे हार्डी संधू मिलते हैं और क्या कुछ होता है यही फिल्म में दिखाया गया है. इससे ज्यादा क्या बताया जाए. बात spoiler की नहीं है, बताने को कुछ हो तो बताएं. जाहिर है मिशन पूरा हो जाता है और इस दौरान आप भी एक मिशन पर लग जाते हैं. कहानी ढूंढने के मिशन पर. ऐसी बहुत सारी फिल्में हम देख चुके हैं और देखकर यही लगता है कि ये सब देखा हुआ है और यही इस फिल्म की कमी है.
एक्टिंग
परिणीति चोपड़ा ने कमाल का काम किया है. एक्शन अवतार में वो जमी हैं. बुर्का बनकर जब वो एक्शन करती हैं तो देखकर मजा आता है. परिणीति ने इमोशनल सीन्स भी अच्छे से किए हैं. देखकर लगता है कि परिणीति ने मेहनत की है. यहां एक हीरोइन एक्शन करती है यही अलग है. हार्डी संधू ने अपना किरदार अच्छे से निभाया है. वो कहीं भी आपको पंजाबी सिंगर या एक्टर वाला फील नहीं देते ना लुक में ना डायलॉग डिलीवरी में. शरद केलकर मेन विलेन बने हैं और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस भी गजब है. रजित कपूर ने भी शानदार काम किया है और दिब्येंदु भट्टाचार्य ने भी अच्छी एक्टिंग की है. एक्टिंग तो सबकी अच्छी है लेकिन इतने दमदार एक्टर्स को जिस तरह के डायलॉग औऱ कहानी दी गई वो कमाल नहीं दिखा पाती.
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. लोकेशन अच्छी है. म्यूजिक अच्छा है. इस फिल्म की सबसे बड़ी दिक्कत इसकी कहानी है. हम कुछ और ट्विस्ट और टर्न की उम्मीद करते हैं लेकिन वो आते ही नहीं और इंतजार करते करते थिएटर से बाहर जाने का टाइम आ जाता है.
डायरेक्टर रिभु दासगुप्ता को इस तरह की फिल्म बनाने से पहले और मेहनत करनी चाहिए थी. कास्टिंग तो अच्छी कर ली. एक्टिंग भी अच्छी करवा ली लेकिन कहानी का कोड गायब हो गया.