Manoranjan Metro | मनोरंजन मेट्रो

शोर मचाती शोहरत…

AddThis Website Tools

जन-जन के नायक, सदी के महानायक, अद्वितीय शख़्सियत, भारतीय हिन्दी सिनेमा के शहंशाह और वर्ष 1969 से 2019 (पूरे 50 वर्ष) का हिन्दी सिनेमा का अब तक का उनका सफ़र, जिसमें सात हिन्दुस्तानी, जंज़ीर, दीवार, त्रिशूल, सिलसिला, कुली, मर्द, आखिरी रास्ता, पॉ तथा मोहब्बतें आदि जैसी अनगिनत फिल्मों में अभिनीत अब तक का उनका अभिनय सचमुच अप्रतिम रहा। एक लम्बे समय से सुपर स्टार के रूप में अपनी साख़ को बचाये रखने के लिए भारतीय हिन्दी सिनेमा और भारतीय समाज के लिये जितनी जद्दोजहद और परिश्रम वे कर सकते रहे, अब तक कर रहे हैं।

एक संयोग और…..‘दादा साहेब फाल्के’ पुरस्कार 1969 में पहली बार देविका रानी जी को दिया गया और संयोग से अमिताभ बच्चन जी ने अपने अभिनय यात्रा की शुरूआत 1969 में ही ‘सात हिन्दुस्तानी’ से की और अब, जबकि उनके अभिनय सफ़र (1969-2019) को पूरे 50 वर्ष पूरे हो रहें हैं, के अवसर पर उन्हें भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित एवं सर्वोच्च पुरस्कार ‘दादा साहेब फाल्के’ दिया जाना निश्चित रूप से उनके द्वारा जिये गये ‘‘अर्द्धसदी के अभिनय सफ़र’’ को एक बड़ा सम्मान है, एक बड़ा गौरव है।……वैसे अब तक उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण जैसे जाने कितने पुरस्कार एवं फिल्म फेयर अवार्ड मिल चुके हैं, लेकिन उनका व्यक्तित्व इन सब से विशाल और अद्भुत है।

बी0बी0सी0 की एक डाक्यूमेन्ट्री में वर्षों पहले मैंने सुना था कि हिन्दुस्तान का एक ऐसा पिछड़ा गाँव , जहाँ कोई शिक्षित नहीं है, जहाँ कोई विद्यालय नहीं है, जहाँ बिजली नहीं है, जहाँ कोई रेडियो नहीं है, जहाँ कोई टी0वी0 नहीं है, जहाँ कोई न्यूज पेपर नही आता है, जहाँ का आदमी कभी बाहर नहीं निकला है, जहाँ के लोगों ने अपने जीवन में कभी कोई सिनेमा नहीं देखा है, लेकिन उनसे भी पूछा गया कि क्या वे अमिताभ बच्चन जी का नाम सुने हैं, या सामने आने पर वे क्या उन्हें पहचान सकते हैं?……तो आपको जानकर हैरत होगी कि उस गाँव के अधिकांश लोगों ने ‘हाँ’ में उत्तर दिया। यानी आप कह सकते हैं कि उनकी ‘शोहरत’ और उनकी लोकप्रियता कितना बोलती है? अब ऐसे 77 वर्षीय शख्सियत को 66वां ‘दादा साहेब फाल्के’ पुरस्कार दिया जाना निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। इससे अमिताभ जी का कद कितना उठेगा, नहीं कह सकता, लेकिन ‘दादा साहेब फाल्के’ जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार का कद निश्चित रूप से अब और बढ़ गया है।

बिग-बी, बाबू मोशाय, लंबू, विजय, जय जैसे अनगिनत उपनामों और चरित्रों से विश्व-पटल पर अपनी अलख को लम्बे समय तक जलाये रखने वाले इस महानायक को बहुत-बहुत बधाई कि उन्होंने भारतीय सिनेमा को वह ऊँचाई दी, जिसकी वह हक़दार थी और इसी की बदौलत आज भारतीय सिनेमा जमीं से आसमां तक में गुंंजायमान है। ऐसी असाधारण शख्सियत को शत्-शत् नमन

साभार – सुशील श्रीवास्तव एडवोकेट

AddThis Website Tools
Exit mobile version