बॉलीवुड जैसी पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में पैर जमाना आसान काम नहीं है। लेकिन गुनीत मोंगा, मीरा नायर, प्रेरणा अरोड़ा, अश्विनी अय्यर तिवारी और जोया अख्तर जैसे फिल्म निर्माताओं ने साबित कर दिया है कि हर किसी के अस्तित्व के लिए जगह है। जैसा कि हम आज इंटरनेशनल वमन्स डे मना रहे हैं, यहां बॉलीवुड की पांच सशक्त महिला फिल्म निर्माताओं की लिस्ट दी गई है। इन फ़िल्ममेकर्स ने अपनी प्रभावशाली फिल्मों के साथ भारतीय सिनेमा की कहानी को फिर से परिभाषित करके अपनी पहचान बनाई है।
मीरा नायर
फ़िल्ममेकर मीरा नायर को इस क्षत्र में पायनियर कहना गलत नहीं होगा। उन्हें किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है। फिल्म निर्माता उन पहली कुछ महिला फिल्म निर्माताओं में से एक थीं, जिन्होंने अपने काम से भारत को वैश्विक मंच पर दर्शाया। उनकी फिल्मोग्राफी में ‘सलाम बॉम्बे!’, गोल्डन ग्लोब विजेता ‘हिस्टेरिकल ब्लाइंडनेस’, ‘वैनिटी फेयर’, ‘द नेमसेक’, ‘द रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट’ और सीरीज़ ‘द सूटेबल बॉय’ जैसे बेहतरीन प्रोजेक्ट्स शामिल हैं। टैलेंट के इस पावरहाउस के पास कई डॉक्यूमेंट्री भी हैं। वह अपने काम के जरिये दुनियाभर में अपनी भारतीय जड़ों और विरासत को प्रदर्शित करना पसंद करती हैं।
गुनीत मोंगा
सशक्त और धैर्यवान इस महिला ने एक फिल्म निर्माता के रूप में अपनी यात्रा में अक्सर अपरंपरागत फिल्मों और नई प्रतिभाओं का समर्थन किया है। उन्होंने जोखिम उठाया है, जिससे उन्हें इंडस्ट्री में बने रहने और चमकने में मदद मिली है। पिछले साल, उन्होंने डॉक्यूमेंट्री ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ के लिए अकादमी अवॉर्ड जीतकर भारत को गौरवान्वित किया। पिछले कई सालों में, गुनीत ने ‘पैडलर्स’ (2012), ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ फ्रेंचाइजी, ‘कटहल’ और कई प्रमुख फिल्में बनाई हैं।
प्रेरणा अरोड़ा
जब लोग बॉक्स ऑफिस नंबरों के पीछे भाग रहे थे और उन्हीं पुरानी कहानियों से बोरियत के जाल में फंस रहे थे, तब प्रेरणा अरोड़ा ने सामाजिक मुद्दों वाली फिल्मों को चुना। उनके लिस्ट में ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ (2017), ‘रुस्तम’ (2016), पैडमैन (2018) और ‘परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण (2018) जैसी फिल्में हैं। अब यह डायनामिक फिल्ममेकर दो आगामी प्रोजेक्ट्स के लिए तैयारी कर रहीं है। दिव्या खोसला कुमार अभिनीत ‘हीरो हीरोइन’ और निधि अग्रवाल अभिनीत ‘डंक’, जो लैंड-माफिया के मुद्दे पर प्रकाश डालती है।
अश्विनी अय्यर तिवारी
अश्विनी की फिल्मोग्राफी पर एक नजर डालें और आप देखेंगे कि उनकी फिल्में महिलाओं के नज़रिये से कैसी हैं, जो फिल्ममेकिंग के बिज़नेस में एक असाधारण बात है। अपने निर्देशन की पहली फिल्म, कॉमेडी-ड्रामा ‘निल बट्टे सन्नाटा’ (2016) के बाद वह सबसे ज़्यादा मांग वाली निर्देशक बन गईं। उन्होंने रोमांटिक कॉमेडी-ड्रामा ‘बरेली की बर्फी’ (2017) के लिए बेस्ट डायरेक्टर का अपना पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता।
जोया अख्तर
जब जोया ने 2009 में ‘लक बाय चांस’ से डेब्यू किया, तो वह एक फिल्म निर्माता बन गईं। अपनी दूसरी फिल्म ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ से उन्होंने कमर्शियल सक्सेस का स्वाद चखा, जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ‘दिल धड़कने दो’, ‘गली बॉय’, ‘लस्ट स्टोरीज़’, ‘घोस्ट स्टोरीज़’ जैसे प्रोजेक्ट्स से लेकर ‘द आर्चीज़’ में यंग डेब्यूटेंट्स के साथ ज़ोया ने दोनों दुनियाओं का शानदार मिश्रण किया। यह फ्यूज़न कमर्शियल और ड्रीमी लेकिन रियल है, जिसके आधार पर वह बी-टाउन की लीडिंग लेडी फिल्ममेकर्स में से एक बन गईं।