लता जैसा कहाँ बन पाता है कोई,
स्वर- साम्राज्ञी न बन पाता है कोई।
युगों-युगों में किसी वरदान के जैसा,
ऐसा अवतार विरला पाता है कोई।
कागज की फुलवारी में रहते बहुत,
रातरानी के जैसा गमकता कोई।
जाने को लोग रोज जाते ही हैं,
ऐसे कहाँ विश्व को रुलाता कोई।
जीवन का अंत तो सभी का है तय,
सूरज-चंदा के जैसा चमकता कोई।
त्याग भरा जीवन जीते हैं कम,
यादगार पल कहाँ जीता कोई।
गाई हैं जो नग्में लता दीदी ने,
ऐसा हुनर कहाँ पाता है कोई।
वक्त देखो उड़ता हवा की पीठ पे,
अदब का फनकार मिलता कोई।
हीरे की कीमत जौहरी ही जानता,
ऐसा पारखी जहां में होता कोई।
वक्त के झरोखे से ही देख पाओगे,
स्वर-कोकिला बन के आता कोई।
रामकेश यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई