आवाज की दुनिया की मलिका लता मंगेशकर ने गीतों के चाहने वालो को अपनी आवाज में एक से एक नायाब गीत दिए है। इन गीतों में उनकी आवाज के ऐसे कई कालजयी गीत हुए है जिन्हें कभी भुलाए नही भूलाया जा सकता है। यकिनन, सुरों की इस मल्लिका ने अपनी जादुई आवाज के चलते लोगों के दिलों में जगह बनाई और उनके प्यार भरे नगमें प्रेमियों को बेहद उत्साहित भी करते थे लेकिन ये बड़ी ही अजीब बात है कि दुनियाभर के लोगों को अपनी आवाज के सहारे प्रेमियों को नायाब तोहफा देने वाली लताजी की मोहब्बत की कभी किसी ने परवाह नही की। भारत की इस धार्मिक उन्मादी व जातिवादी समाज ने उनकी आवाज को तो खूब सराहा, अजीम प्यार भी दिया लेकिन उनके प्यार को कभी प्यार ना दिया। बेशक लता मंगेशकर जीवन भर बिन ब्याही रही। मगर जिस तरह एक उम्र में हर इंसान के दिल में किसी के लिए प्यार उमड़ता है ठीक उसी उम्र में उनका दिल भी उसी तरह धडका था। लताजी को भी जीवन के किसी मोड़ पर किसी से प्यार हुआ था लेकिन कभी भी किसी ने उनके प्यार की कद्र नही की।
अब वे हम सबको अपने दिल में मोहब्बत की हसरत लिए ही विदा कह गई है। आज जब वे हमें छोड़ कर चली गई तो हम सब गमजदा है लेकिन हमने कभी उनको जीते जी प्यार में खुश रहने की हिम्मत नही बख्शी। हां ये एक सच है। अतीत की बातों को साक्षी माना जाए तो लताजी को भी अपनी जिंदगी में दो पुरूषों से प्रेम हुआ था। और तीसरे पुरूष को लताजी से प्यार था। एक थे पाकिस्तान के उस्ताद सलामत अली खान। सलामत वे शख्सियत थे जिन्हें अपने दौर का तानसेन माना गया। दूसरे थे डूंगरपुर राजघराने के महाराजा राजसिंह। वे क्रिकेटर थे। तीसरे इंसान थे प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार। हालाकि इस तीसरे इंसान से लताजी को कभी प्यार नही था बल्कि किशोर कुमार ही लताजी से एक तरफा प्यार करते थे।
अब प्यार की इन कहानियों में हम सबसे पहले पाकिस्तान के उस्ताद सलामत अली खान से लताजी के प्यार का जिक्र करते है। इसमें दो राय नही है कि सुर कोकिला लता मंगेशकर की आवाज की दीवानी तमाम हस्तियां रही हैं, लेकिन वे खुद उस्ताद सलामत अली खान की दीवानी थीं। वो उस्ताद सलामत, जिन्हें अपने दौर का तानसेन माना जाता था। ये इश्क की एक वो अजीम दास्तां है जिसमें सुरों की मल्लिका ने ताल की महान हस्ती से इश्क किया था। लता मंगेशकर ने उस्ताद सलामत अली खान से बेपनाह मोहब्बत की थी। इतना ही नही उन्हें शादी तक की पेशकश कर दी थी। लेकिन हर अमर प्रेम कहानी की तरह इसका अंजाम भी नाकामी ही ठहरा। इस मोहब्बत का आगाज पिछली सदी के पांचवें दशक में हुआ था। ये दौर लताजी और उस्ताद सलामत अली के शबाब की शुरुआत का था। लताजी और सलामत, इन दो अजीम फनकारों की मोहब्बत इसी समय परवान चढ़ी थी।
ये वो दौर था जब बंबई फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड नहीं बनी थी। इसलिए संगीत के क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत के माहिर फनकारों का राज था। इस समय लताजी पाश्र्वगायिका थीं और उस्ताद सलामत ख्याल और ठुमरी गायक। कमाल ये कि दोनों ही फनकार अपनी-अपनी कला में माहिर और शिखर पर थे। इसी दौर में लताजी और उस्ताद सलामत एक-दूसरे से मोहब्बत करने लगे थे। वे शादी करने का फैसला भी कर चुके थे, लेकिन ऐसा हो न सका। ये उन दिनों की बात है जब उस्ताद सलामत अली खान और उस्ताद नजाकत अली खान की जोड़ी लाहौर से कलकत्ता और फिर बाम्बे पहुंची थी। ये वही दौर था जब पूरे भारत में उनके यादगार कॉन्सर्टस हो रहे थे। सनद रहे कि उस्ताद सलामत के पोते गायक शुजात अली खान कुछ साल पहले जब मुंबई में थे तब उनकी मुलाकात लताजी और आशा भोंसले से हुई थी।
बकौल सुजात दोनों इतने प्यार से मिलीं कि यूं लगा जैसे मैं उनका भी पोता हूं। अपनी आखों के आंसुओं को छुपाते हुए शुजात ने बताया कि- मेरे दादा की आंखें लताजी का गाया ये गीत, लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो, गुनगुनाते हुए नम हो जाया करती थीं। यूं लगता था जैसे उस्ताद सलामत राग सोनी की उदास तस्वीर बन गए थे। काबिलेगौर हो कि 1998 में तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ने कहा था कि उनकी ख्वाहिश है कि लता मंगेशकर लाहौर में कॉन्सर्ट करें और लाहौर के संगीतप्रेमी उनकी सुरीली आवाज का लुत्फ उठाएं। इसके जवाब में लता मंगेशकर ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा था कि उनका जी करता है कि वे उड़ कर लाहौर चली आएं।
इस इंटरव्यू में ही लताजी ने यह राज खोला था कि उस्ताद सलामत अली खान ने वादा किया था कि वे उन्हें लाहौर ले जाएंगे, लेकिन उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया। लताजी का यह इंटरव्यू पढक़र उस्ताद सलामत बहुत दिन तक उदास रहे। यह क्लासिकल मोहब्बत भारत और पाकिस्तान के बनते-बिगड़ते रिश्तों की भेंट चढ़ गयी। इस मोहब्बत को दोनों देशों की बीच खड़ी नफरत की दीवार में चुनवा दिया गया।
सवाल उठता है कि उस्ताद सलामत ने लता के साथ शादी से इनकार क्यों किया था? उस्ताद सलामत ने एक दफे कहा था कि लता बाई कोई आम फनकारा नहीं थीं। हिन्दू समाज में उन्हें एक देवी माना जाता था। इसलिए लता से मेरी शादी होना आसान मामला नहीं था। उस वक्त मुझे यूं लगा कि अगर मैंने लता से शादी कर ली तो कम-से-कम ये हो सकता है कि मुझे और लता को खत्म कर दिया जाए। और ज्यादा-से-ज्यादा ये भी मुमकिन था कि पकिस्तान और इंडिया में जंग हो जाती। ऐसा मुमकिन था क्योंकि दोनों के बीच समस्याएं हैं और ये दोनों लडऩे के बहाने भी खोजते रहते हैं। इसके साथ ही बकौल उस्ताद सलामत- हम दोनों भाई 1953 के बाद कई मर्तबा भारत के दौरों पर जाते रहे। मुंबई में हम अक्सर लता बाई के मेहमान बनते। एक बार ऐसा हुआ कि हम लता मंगेशकर के यहां ठहरे हुए थे। लता बाई ने अपने तमाम काम टाल दिए। दर्जनों फिल्म प्रोडूसर और म्यूजिक डायरेक्टर अपने फिल्मों के गानों के लिए डेट्स लेने उनके घर आते लेकिन वो किसी से मिल नहीं रही थीं।
उस्ताद सलामत ने कहा कि बड़े भाई उस्ताद नजाकत, जो दुनियावी तौर पर उनसे ज्यादा समझदार थे, मामले की नजाकत को भांपते हुए बादल चौधरी के यहां शिफ्ट हो गए। बादल चौधरी इन दोनों भाइयों के प्रोमोटर थे और भारत आने पर ये दोनों कलकत्ता और मुंबई में इनके घर पर ही रहते थे। मुंबई में लता का घर बादल चौधरी के घर के पास ही था। अब ये हुआ कि लता मंगेशकर सुबह उठकर बादल चौधरी के घर आ जातीं और फिर देर तक उस्ताद सलामत के साथ रहतीं। वे घर से निकलते हुए घूंघट ओढ़ लेती थीं ताकि कोई उन्हें पहचान न सके।
सनद रहे कि कलकत्ता के बादल या बालदर चौधरी इन दोनों अजीम फनकारों के रोमांस का एक अहम किरदार रहे हैं। बादल चौधरी 15 साल तक साया बनकर उस्ताद सलामत के साथ रहे और उनके लता मंगेशकर के परिवार से भी गहरे रिश्ते हैं। लगभग आधी सदी की इस नाकाम मोहब्बत के सिलसिले में किये गए सवाल का जवाब उन्होंने इस अंदाज में दिया मानो कोई ब्रेकिंग न्यूज दे रहे हों- उस्ताद सलामत भगवान का रूप लेकर दुनिया में आए थे। उनके जैसा कोई गायक नहीं हुआ। बादल ने बताया कि लता मंगेशकर ने उस्ताद सलामत से यहां तक कहा था कि वे छह महीने पकिस्तान में अपने बीवी-बच्चों के साथ रहें और छह महीने मुंबई में उनके साथ। वो सारा दिन उस्ताद सलामत का संगीत सुनती रहती थीं। फिल्मी म्यूजिक से उनका दिल जैसे उठ सा गया था।
बादल ने ये भी कहा कि लताजी और उस्ताद सलामत मुंबई में मेरे घर में मिलते थे जहां लता घंटों खान साहब को सुनती थीं। दरअसल ये कमाल का इश्क था। इसके साथ ही बादल ने कहा कि उस्ताद सलामत शरीफ इंसान थे। अगर उनके मन में रत्ती भर भी लालच होता तो वे लता से फौरन शादी कर लेते। बेहद प्रसिद्ध गायक उस्ताद हुसैन बख्श गुल्लू उस्ताद सलामत के करीबी रिश्तेदार हैं। इस इश्क के बारे में उनने बताया कि जब उस्ताद सलामत ने लताजी के साथ शादी से इनकार कर दिया तो वे खान साहब से नाराज हो गयी थीं। गायिका रिफत सलामत उस्ताद सलामत की बेटी हैं। वे जब सन फ्रांसिस्को में रहती थी तब उसने बताया कि अगर मेरे वालिद लता मंगेशकर से शादी करते तो मुझे तो शायद फख्र होता लेकिन वो मेरी मां की सौतन होतीं, जिसका मुझे दु:ख भी होता। इसलिए ये एक अजीब एहसास है जिसे महसूस तो किया जा सकता है लेकिन बयान नहीं किया जा सकता। उस्ताद सलामत के बेटे शखावत सलामत अली खान जब अमेरिका के शहर सैक्रामेंटो में रहते हैं तब उनने भी कहा था कि उनके वालिद और लता मंगेशकर का रिश्ता पारस्परिक सम्मान और प्रेम का रिश्ता था। दोनों दुनिया-ए-संगीत की ऐसी हस्तियां और रूहें हैं जिन्हें उस वक्त तक याद रखा जाएगा जब तक मेलोडी और सुर-ताल से मोहब्बत करने वाले मौजूद रहेंगे। अब हम बात करते है लताजी के दूसरे अधूरे इश्क की, जो वह भी एक दास्तां बन कर रह गया। अब लता मंगेशकर को डूंगरपुर के राजकुमार से मोहब्बत हुई थी। लेकिन ये प्रेम कहानी भी अधूरी ही रह गई। दिवंगत राजकुमार क्रिकेटर थे और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व अध्यक्ष। लताजी जहां उनके क्रिकेट खेलने के अंदाज पर मर मिटीं, तो वहीं राज सिंह उनकी आवाज के कायल थे। राजसिंह लता मंगेशकर को ‘मिट्ठू’ नाम से बुलाते थे।
कहा जाता है कि लता मंगेशकर और राज सिंह एक दूसरे के होने वाले थे, लेकिन जब राज सिंह ने शादी की बात अपने पिता महारावल लक्ष्मण सिंह से की तो उसे ठुकराते हुए खारिज कर दिया था। इसके पीछे कारण यह था कि, लताजी एक शाही परिवार से नहीं थी। ऐसे में ये रिश्ता टूट गया। मगर दोनों का प्यार इतना गहरा था कि ना कभी लताजी ने शादी की और ना ही कभी राज ने किसी का साथ निभाया। अब हम बात करते है गायक किशोर कुमार के लता मंगेशकर के साथ एक तरफा प्यार की। एक बार लताजी ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा था कि किशोर दा भी उनको चाहते थे। कई बार किशोर कुमार लताजी का पीछा करते-करते स्टूडियो तक गए थे। मगर यह बात लता को पसंद नहीं आई और उन्होंने इसको लेकर शिकायत भी की थी। हालांकि, लताजी को तब तक ये पता नहीं था कि वो किशोर कुमार हैं। बहरहाल हमने कभी लताजी के ईश्क की परवाह नही की और वो ताउम्र अपने प्यार की चाह में दर्द की जिंदगी जीती रही। गर ये कहें कि इतनी अजीम शख्सियत के नसीब में भी सिवाय दर्द के कुछ ना था तो अतिश्योक्ति नही होगा। लताजी को लाख लाख सलाम। अलविदा लती जी।
संजय रोकड़े
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लेखक- द इंडिय़ानामा पत्रिका संपादन करने के साथ ही सम-सामयिक विषयों पर कलम चलाते है।