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Entertainment की दुनिया में रीना जैन की अलग पहचान

रीना जैन ने बतौर मॉडल, एंकर, फैशन कॉरियोग्राफर अपनी एक खास पहचान बनाई है। इसके अलावा रीना जैन एडवोकेट हैं, न्यूज़ सब एडिटर हैं, इवेंट ऑर्गेनाइजर हैं, फिलहाल एक कैफे भी चला रही हैं। लेकिन इस पहचान से पहले की कहानी आज वो खुद बता रहीं हैं।


उत्तर प्रदेश के एक बहुत ही छोटे से कस्बे तिर्वागंज में जन्म हुआ, परिवार में मां-पापा, एक बङी बहन आशा और एक छोटी बहन लकी हैं। चार साल बाद पापा की जॉब के चलते परिवार उत्तर प्रदेश के जिले मैनपुरी में शिफ्ट हो गया। मेरी पूरी स्कूलिंग मैनपुरी से ही हुई। लेकिन वो कहते हैं ना कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, मुझे भी बचपन से ही मॉडलिंग का काफी शौक था। उस समय रील वाले कैमरे से अलग-अलग पोज बना कर फोटो खिंचवाती रहती थी। हालांकि तब तक इस फील्ड के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। बस मेरी दुनिया घर- स्कूल- ट्यूशन क्लास तक ही सीमित थी, बाहरी दुनिया के बारे में कुछ पता ही नहीं था।
लाईफ में एक बङा मोङ आया, जब ग्रेजुएशन करने के लिए राजस्थान की राजधानी जयपुर ( इतने बङे शहर) में कदम रखा।
यहाँ सबकुछ बहुत अलग सा था, हॉस्टल में अलग अलग राज्य के लोग, सीनियर-जूनियर का अजीब रिश्ता। सबकुछ अच्छा तो लग रहा था, लेकिन दिल में डर भी था । यहां मेरी बङी बहन का बहुत सपोर्ट मिला। फिर क्या था ऐसा लगा जैसे एक पक्षी को उङने के लिए पंख मिल गए हों, अब सिर्फ उङना सीखना था, लेकिन वो भी कहां इतना आसान था।


इसी दौरान एक ब्यूटी कॉंटेस्ट के बारे में पता चला, जिसकी फीस 3 हजार रुपये थी। इतने रुपये नहीं थे मेरे पास, माँ- पापा को मॉडलिंग का काम पसंद नहीं था, तो उनसे कोई मदद नहीं मिली, फिर मैंने अपनी हॉस्टल की फ्रैंड्स से, कॉलेज की टीचर्स से मदद मांगी, लेकिन सभी ने मना कर दिया। जिस कारण मैं उस कॉंटेस्ट का हिस्सा नहीं बन पायी। बाद में मैं और मेरी दीदी एक रूम लेकर रहने लगे।
मैंने इस बारे में सोचना बंद कर दिया, क्योंकि एक अंजान शहर में किसी से कोई सपोर्ट मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी। लेकिन मेरी दीदी ने हार नहीं मानी, जब मैं कॉलेज जाती तो वह अखबार में मेरे लिए मॉडलिंग का काम ढूंढती, तभी एक एड में उसे मॉडलिंग इंस्टीट्यूट के बारे में पता चला। मैं और दीदी वहां पहुंचे, तो पता चला कि वह एक डांस इंस्टीट्यूट है, जो लॉकल एलबम में अपने डांसर्स को भेजते थे, मैं डांस में तो बचपन से ही अच्छी थी, तो मैंने उन्हें ज्वाइन कर लिया। कई एलबमों में डांस किया, और फिर 2004 में वहीं किसी से मुलाकात हुई जिसने मिस राजस्थान 2004 के बारे में ना सिर्फ बताया, बल्कि उसमें बिना फीस के एंट्री भी दिलवाई ।


यहां से शुरू हुआ मेरे सपनों का सफर।
मिस राजस्थान 2004 के टॉप 5 में रही, विनर न बनने के बाबजूद भी वहां मेरी ही मॉडलिंग के चर्चे हो रहे थे। वहां के मैनेजमेंट में शामिल एक व्यक्ति मेरी परफॉर्मेंस से काफी इंप्रेस थे, उन्होंने मुझे कॉंटेस्ट के बाद जयपुर में कई छोटे-बड़े फैशन शो दिये। उस समय एक शो का 500/- पे मिलता था। मैं बहुत खुश थी, लेकिन ये तो सिर्फ शुरुआत थी।


इस बीच मैंने अपनी पढाई को जारी रखने के लिए लॉ कॉलेज में एडमिशन ले लिया। मेरी दीदी ने मेरे लिए मॉडलिंग के अच्छे काम की तलाश नहीं छोड़ी। और एक दिन उसे एक इंटरनेशनल ज्वैलरी के शूट का एड दिखाई दिया, जो जयपुर में ही होना था। अगले दिन मैं और दीदी वहां मिलने पहुंचे, उन्होंने स्क्रीन टेस्ट में मुझे सेलेक्ट कर लिया। उसके बाद उन्होंने जयपुर में 3-4 बार शूट कराया और मैं उनकी फिक्स मॉडल बन गई। ये था मेरा 500 से 5000 पे का सफर। अब तक मैं राजस्थान की अच्छी मॉडल में शामिल हो चुकी थी। और धीरे-धीरे टॉप मॉडल में शामिल हो गई। जयपुर में कई एक्सपोर्ट कम्पनी, ज्वैलरी, हेयरकलर कम्पनी के लिए काम किया।


इसके अलावा मैने दिल्ली, बैंगलोर, म.पी, मुम्बई में शो और शूट किये। धीरे धीरे मा- पापा का भी सपोर्ट मिलने लगा।
2007 में मैंने इवेंट में हॉस्टिंग करना शुरू कर दिया, कई छोटे-बड़े शो हॉस्ट किए। इसी बीच मुझे जयपुर में एक कम्पनी से फैशन शो की कॉरियोग्राफी करने का ऑफर मिला। मैंने 4 साल लगातार उनका शो कोरियोग्राफ किया, इसके अलावा दूसरे कई शो मैंने बतौर फैशन कोरियोग्राफर  किए। छोटी बहन भी स्कूलिंग के बाद जयपुर आ गई थी। मीडिया जॉब के चलते उदयपुर शिफ्ट हो गई। मैंने औरमेरी दोनों बहनों ने मिलकर जयपुर में अपना घर बनाया और माँ-पापा को भी जयपुर शिफ्ट कर लिया।


मुंबई का सफर
वहां मेरे जैसे बहुत से लोग स्ट्रगल करते दिखाई दिये। एक बार फिर से एक अलग दुनिया देखने को मिल रही थी, वहां कोई अपना नहीं, कोई सपोर्ट नहीं। बिल्कुल जीरो से शुरुआत करनी थी। वहां मुझे किसी फिल्म की हीरोइन नहीं बनना था, मेरा कभी ये सपना रहा ही नहीं, कि मैं फिल्म करूं। मुझे टीवी आर्टिस्ट बनना था, जो लोगों के घरों में उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं। मुंबई में दो साल रही, काफी स्ट्रगल भरी लाइफ रही। कुछ छोटे मोटे काम किए पर, सेटिस्फेक्शन नहीं था।


वापस आकर शुरू की इवेंट कम्पनी
2016 में मेरी दीदी की शादी हो गई, और मैंने मुंबई को बाय कह दिया। जयपुर में फिर से इवेंट हॉस्टिंग करने लगी।  2017 में मैंने उदयपुर में अपनी छोटी बहन लकी के साथ इवेंट कम्पनी शुरू की। हालांकि वह उदयपुर में मीडिया में कार्यरत है। उसकी खुद का न्यूज बैबपॉर्टल है। सब अच्छा चल रहा था कि 2020 में कोरोना के कारण इवेंट बंद हो गए। इसके बाद मैंने एक।न्यूज एजेंसी के लिए सब-एडिटर का काम किया। 2021 में उदयपुर में अपना कैफे शुरू किया। अभी फिलहाल में उदयपुर से ही अपने सारे काम संभाल रही हूं।


बस यही मेरी कहानी है, इन सबसे यही समझ आया कि जिन्दगी और संघर्ष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,हमेशा साथ-साथ। हम सोचते हैं कि हमारी लाइफ हमारे नियंत्रण में है, लेकिन सच तो यह है कि हम जिन्दगी के बहाव के साथ बहते चले जाते हैं, और हमें पता भी नहीं चलता। आगे भी लाइफ जहां ले जायेगी, मैं तैयार हूँ। क्योंकि जिन्दगी हर कदम एक नई जंग है।
ना डरना है, ना झुकना है, बस आगे बढ़ते रहना है। क्योंकि जिन्दगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है।।
 
हंसते रहिए, मुस्कुराते रहिए।।
 

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