फिल्म – श्री गणेशा
स्टार कास्ट – प्रथमेश परब, मेघा शिंदे, शशांक शेंडे
डायरेक्टर – मिलिंद कवाडे
प्रोड्यूसर – संजय माणिक भोसले, कंचन संजय भोसले
रेटिंग – 3.5 स्टार
प्रथमेश परब और मेघा शिंदे स्टारर फैमिली एंटरटेनर मराठी फिल्म श्री गणेशा सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए तैयार है। चलिए जानते हैं कैसी है फिल्म।
स्टोरी
फिल्म की कहानी सदानंद पाटिल (प्रथमेश परब) की है जो कि बाल सुधार गृह में रह रहा है। उसे उसके पिता भाऊसाहेब पाटिल (शशांक शेंडे) लेने आए हैं क्योंकि उसकी मां की तबियत खराब है और वो ज्यादा दिन तक जीने वाली नहीं है। रास्ते में सदानंद एक होटल में खाना खाने रुकता है और बगल में बैठे लोगों का पैसों से भरा हुआ बैग ले लेता है, जिसमें पूरे पच्चीस लाख रुपए हैं। इसी बीच रास्ते में दीपाली (मेघा शिंदे) सदानंद और उसके पिता से लिफ्ट मांगती है जो कि एक फूड ब्लॉगर है। रास्ते में काफी आगे चलने के बाद सदानंद को यह पता चलता है कि उसके पिता पैसों को लेकर काफी परेशान हैं तो वो उन पच्चीस लाख में से दस लाख रुपए उन्हें देने का फैसला करता है। कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब सदानंद और उसके पिता को पता चलता है कि उस बैग में पैसे नहीं बल्कि गांजा और चरस है। अब आगे क्या होगा, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
डायरेक्शन
फिल्म को डायरेक्ट मिलिंद कवाडे ने किया है और उनका डायरेक्शन बढ़िया है। फिल्म का स्क्रीनप्ले ठीक है और सिनेमेटोग्राफी भी लाजवाब है। फिल्म का फर्स्ट पार्ट सेकंड पार्ट की अपेक्षा ज्यादा एंटरटेनिंग है। फिल्म की एडिटिंग भी ठीक है और फिल्म का क्लाइमैक्स भी काफी अच्छा है। फिल्म का म्यूजिक भी काफी इंप्रेसिव है, खासतौर पर सॉन्ग आई मधुबाला काफी मनोरंजन करता है।
परफॉर्मेंस
फिल्म के हीरो प्रथमेश परब एक मंझे हुए कलाकार हैं और वो स्क्रीन पर जो भी करते हैं, वो अच्छा ही लगता है। इस बार भी प्रथमेश परब ने दमदार काम किया है। मेघा शिंदे एक नई एक्ट्रेस हैं लेकिन फिल्म में उनकी परफॉर्मेंस देखकर लगता है कि वो भी काफी मंझी हुई कलाकार हैं। शशांक शेंडे का भी अभिनय कमाल का है। फिल्म में उन्होंने एक बढ़िया परफॉर्मेंस दी है। संजय नार्वेकर ने भी अच्छा काम किया है, बस उनकी स्क्रीन प्रेजेंस ज्यादा होती तो और मजा आता। फिल्म के बाकी कलाकारों का भी काम ठीक है।
क्यों देखें
श्री गणेशा एक पारिवारिक फिल्म है और इस तरह की फिल्में और भी बननी चाहिए। यह एक ऐसी फिल्म है, जिसे देखकर किसी भी बेटे को अपने पिता की जरूर याद आएगी। इसके अलावा फिल्म यह दिखाती है कि एक पिता अपने बेटे के लिए क्या नहीं करता है लेकिन बेटे को उसका अहसास कभी नहीं होता है। बेटे को यह अहसास तब होता है, जब उसके पिता दुनिया से चले जाते हैं। इसलिए समय रहते अपने पिता से बात करिए और उनका सम्मान करिए, यह सब चीजें यह फिल्म सिखाती और बताती भी है।